|
|
|
|
|
वह शक्ति हमें दो दयानिधे, कर्त्तव्य मार्ग पर डट जाए ।
पर सेवा पर उपकार में हम, निज जीवन सफल बना जाए ॥
हम दीन-दुखी निबलो-विकलो, के सेवक बन संताप हरे ।
जो हो भूले भटके बिछूर्रे, उनको तारे खुद तर जाए ॥
छल द्वेष-दंभ पाखण्ड-झूठ, अन्याय से निसि दिन दूर रहे ।
जीवन हो शुद्ध सरल अपना, शुचि प्रेम-सुधा रस बरसाए ॥
निज आन मान-मर्यादा का, प्रभु ध्यान रहे अभिमान रहे ।
जिस देव ब्रम्ह में जन्म लिया, बलि दान उसी पर हो जाए ॥
कर्त्तव्य मार्ग पर डट जाए, वह शक्ति हमें दो दयानिधे ।
पर सेवा पर उपकार में हम, निज जीवन सफल बना जाए ॥
|
|
|
|
|
|
|
|